20171004

मूर्तिकार की तरह गढ़ता है, गुरु

कवि दंडी की साहित्य साधना चल रही थी। मार्ग-दर्शन उन्हीं के पिता कर रहे थे। किसी भी दिशा में आगे बढ़ने के लिए विशेष प्रयास, विशेष पुरुषार्थ करना ही पड़ता है। पहलवानी करना चाहे या खिलाड़ी बनना हो, वाणी का उपयोग हो या लेखनी का, ज्ञानमार्गी बने या कठोर कर्म के पथ में उतरे-सभी के लिए यही एक तत्व ज्ञान है। जितना तपेगा उतना ही निखरेगा। जितनी रगड़ खाएगा उतनी ही चमक पाएगा। कवि दंडी अपनी उपलब्धियों को अपने समकालीन कवि कालिदास की प्रतिभा से आगे ले जाना चाहते थे। वह स्वयं पूरी लगन से श्रम कर रहे थे और उनके पिता पूरी तत्परता से निर्देशन।