20220322

गायत्री महा मंत्र - भावार्थ एवं महत्व (Gayatri Maha mantra – Meaning & importance)

 गायत्री महामंत्र - भावार्थ एवं महत्व https://youtu.be/Bk2DMboRWfo


गायत्री महा मंत्र  - ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। 

गायत्री मंत्र का अर्थ : पृथ्वीलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक में व्याप्त उस सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करे।

20201120

खुदा की सच्ची इबादत




खलीफा उमर एक दिन  नमाज पढ़ रहे थे। उनने देखा कि—आसमान में एक फरिश्ता मोटी बही बगल में दबाये उड़ा चला आ रहा है। उनने फरिश्ते को पुकारा और पूछा कि उस मोटी बही में क्या लिखा है ? 

फरिश्ते ने कहा—’इसमें उन लोगों की नाम का लिस्ट है, जो खुदा की इबादत करते हैं।” खलीफा को आशा थी कि उसमें उनका नाम जरूर होगा। इसलिए उनने पूछा—भाई, जरा देखना मेरा भी नाम इस बही में है न? 

20171004

मूर्तिकार की तरह गढ़ता है, गुरु

कवि दंडी की साहित्य साधना चल रही थी। मार्ग-दर्शन उन्हीं के पिता कर रहे थे। किसी भी दिशा में आगे बढ़ने के लिए विशेष प्रयास, विशेष पुरुषार्थ करना ही पड़ता है। पहलवानी करना चाहे या खिलाड़ी बनना हो, वाणी का उपयोग हो या लेखनी का, ज्ञानमार्गी बने या कठोर कर्म के पथ में उतरे-सभी के लिए यही एक तत्व ज्ञान है। जितना तपेगा उतना ही निखरेगा। जितनी रगड़ खाएगा उतनी ही चमक पाएगा। कवि दंडी अपनी उपलब्धियों को अपने समकालीन कवि कालिदास की प्रतिभा से आगे ले जाना चाहते थे। वह स्वयं पूरी लगन से श्रम कर रहे थे और उनके पिता पूरी तत्परता से निर्देशन।

20170916

प्रेतात्मा की गवाही

रात्रि की स्याह कालिमा घने बादलों एवं धुँध भरे कोहरे से मिलकर वातावरण को किंचित रहस्यमय बना रही थी। हल्की सी बूँदा-बाँदी और सुनसान निर्जनता इस रहस्यमयता में किसी अनजाने भय की सृष्टि कर रही थी। लगता है इस वातावरण का प्रभाव उस व्यक्ति पर था, जो इस समय घोड़े पर बैठा हुआ इस निर्जन क्षेत्र से गुजर रहा था। रह-रहकर उसके समूचे शरीर में एक अजीब सी सिहरन दौड़ जाती थी। कह नहीं सकते यह सिहरन ठण्ड के कारण थी अथवा भय के कारण या फिर उस पर ठण्ड और भय का ही मिला-जुला असर था। सत्य जो कुछ भी हो, पर अभी उसे अपने घर पहुँचने की जल्दी थी। इसी कारण वह जब-तब घोड़े को एड़ लगाकर उसे तीव्र गति से दौड़ने के लिए प्रेरित कर रहा था।

शीर्षासन का महत्व

आसनों का महत्व साधारण व्यायाम से बहुत अधिक है। तभी तो योग के आठ अंगों में उन्हें स्थान दिया गया है। यदि उनमें विशेषता न होती तो कोई भी व्यायाम योग का अंग बन जाता। कारण यह है कि निर्बल शरीर वाले, बुद्धि जीवी, रोगी, बालक, स्त्रियाँ, बुड्ढे सभी के लिए आसनों का व्यायाम ऐसा है जो बिना किसी प्रकार की अनावश्यक शक्ति हरण किये शरीर के मन्द हुए कल पुर्जों को आसानी से चला देता है। साधारण व्यायाम में यह बात नहीं है। डंड बैठक करने के बाद आदमी थक जाता है और सुस्ती आती है किन्तु आसनों के बाद प्रफुल्लता और फुर्ती का उदय होता है।