आइए जानते है धर्म का आचरण पर स्वामी विवेकानन्दजी का विचार
स्वामी विवेकानन्द बताते है कि आप यह अच्छी तरह समझे कि किसी धर्म-पुस्तक का पाठ करने अथवा उसमें लिखी हुई धर्म विधियों की कवायद करने से ही कोई धार्मिक नहीं हो सकता। किसी धर्म या धर्म-पुस्तक पर विश्वास करने से ही यह ‘जन्म सार्थक नहीं होगा’ बल्कि उसमें बताये हुए मार्गों का अनुभव करना चाहिये।
‘जिनका अन्तःकरण पवित्र है, वे धन्य हैं, वे ईश्वर को देख सकेंगे ।’ परमेश्वर का साक्षात्कार करना ही मुक्ति है। कुछ मन्त्र रट लेने या मन्दिरों में शब्दाडम्बर करने से मुक्ति नहीं मिलती,परमात्मा की प्राप्ति के लिए बाह्य साधन कुछ काम नहीं आते, उसके लिये आन्तरिक सामग्री की जरूरत है।
आध्यात्मिकता ज्ञान से जाने रोग तथा व्याधि का मनोवैज्ञानिक पहलू
मनुष्य का मन जगत नियन्ता का एक अद्भुत आश्चर्य है, वही समस्त जड़ चेतन का कारण भूत है तथा मानव जीवन के समग्र पहलू प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से ही उसी एक केन्द्र के इर्द-गिर्द चक्कर लगा रहे हैं। मनुष्य का अस्तित्व मानसिक संघर्ष से हुआ है, उसके विचारों ने उसका पंच भौतिक शरीर विनिर्मित किया है। अपनी मानसिक अवस्था के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपनी बेड़ियाँ दृढ़ करता है तथा अज्ञान तिमिर में आच्छन्न हो ठोकरें खाता फिरता है।
गायत्री महामंत्र - भावार्थ एवं महत्व https://youtu.be/Bk2DMboRWfo
गायत्री महा मंत्र - ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
गायत्री मंत्र का अर्थ : पृथ्वीलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक में व्याप्त उस सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करे।
खलीफा उमर एक दिन नमाज पढ़ रहे थे। उनने देखा कि—आसमान में एक फरिश्ता मोटी बही बगल में दबाये उड़ा चला आ रहा है। उनने फरिश्ते को पुकारा और पूछा कि उस मोटी बही में क्या लिखा है ?
फरिश्ते ने कहा—’इसमें उन लोगों की नाम का लिस्ट है, जो खुदा की इबादत करते हैं।” खलीफा को आशा थी कि उसमें उनका नाम जरूर होगा। इसलिए उनने पूछा—भाई, जरा देखना मेरा भी नाम इस बही में है न?
कवि दंडी की साहित्य साधना चल रही थी। मार्ग-दर्शन उन्हीं के पिता कर रहे थे। किसी भी दिशा में आगे बढ़ने के लिए विशेष प्रयास, विशेष पुरुषार्थ करना ही पड़ता है। पहलवानी करना चाहे या खिलाड़ी बनना हो, वाणी का उपयोग हो या लेखनी का, ज्ञानमार्गी बने या कठोर कर्म के पथ में उतरे-सभी के लिए यही एक तत्व ज्ञान है। जितना तपेगा उतना ही निखरेगा। जितनी रगड़ खाएगा उतनी ही चमक पाएगा। कवि दंडी अपनी उपलब्धियों को अपने समकालीन कवि कालिदास की प्रतिभा से आगे ले जाना चाहते थे। वह स्वयं पूरी लगन से श्रम कर रहे थे और उनके पिता पूरी तत्परता से निर्देशन।